Karwa Chauth varat 2022 कब है 13 या 14 को ?

माता कूष्मांडा तेज की देवी हैं। इन्हीं के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। कहते हैं कि सारे ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है वो देवी कूष्मांडा की देन है। आइए जानते हैं कैसा है मां का यह स्वरूप, कैसे करते हैं मां के इस रूप की पूजा ।
कूष्मांडा का मतलब है कि जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया। माना जाता है कि मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं।
माँ कूष्मांडा का स्वरूप मंद-मंद मुस्कुराहट वाला है। कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तो देवी भगवती के इसी स्वरूप ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा और आदिशक्ति हैं।माँ कूष्मांडा के इस दिन का रंग हरा है। मां के सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। वहीं आठवें हाथ में जपमाला है, जिसे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली माना गया है। मां का वाहन सिंह है। मां भगवती का चौथा स्वरूप यानी कि देवी कुष्मांडा भक्तों पर अत्यंत शीघ्र प्रसन्न होती है। यदि सच्चे मन से देवी का स्मरण किया जाए और स्वयं को पूर्ण रूप से उन्हें समर्पित कर दिया जाए तो माता कुष्मांडा भक्त पर अतिशीघ्र कृपा करती हैं।
पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र "सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे "। माता का बुध ग्रह पर अधिकार है इसलिए उनका प्रिय रंग हरा है। इस दिन व्रती सुबह-सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर के माता की पूजा हेतु उनकी मूर्ति स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें। मूर्ति का गंगा जल से शुद्धिकरण करें। फिर उनको सिंदूर, हल्दी, चन्दन, रोली, दुर्वा और लाल चुनरी अर्पित करें। फिर धूप-दीप जला कर उनको प्रसाद अर्पित करें। संस्कृत में कुष्मांड को कद्दू बोला जाता है, इसलिए माता को कद्दू से बना पेठा प्रसाद के रूप में जरुर चढ़ाएं। व्रती को इस मंत्र के जाप से विशेष फल प्राप्त होता है।
माँ कुष्मांडा को भोग कैसे लगाए :-
देवी कुष्मांडा लगाए गए भोग को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करती हैं। यह कहा जाता है कि मां कुष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है।
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सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु
मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।
चौथा जब नवरात्र हो, कूष्मांडा को ध्याते।।
जिसने रचा ब्रह्मांड यह, पूजन है उनका ।।
आद्य शक्ति कहते जिन्हें, अष्टभुजी है रूप ।।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप ॥
कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार ।।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार ॥
क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार ।।
उसको रखती दूर मां, पीड़ा देती अपार ॥
सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए ।।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए ॥
नवरात्रोंमै या मां कृपा कर दो माँ ।।
नवरात्रों वर की मां कृपा करदो मां ॥
जय मां कूष्मांडा मैया।।
जय मां कूष्मांडा मैया ॥
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