तमसो माँ ज्योतिर्गमय
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Diwali kab hai in hindi |
Diwali 2021:- आइये जानते है इस वर्ष ( 2021 me diwali ) दिपावली कब है और पुजा करने का शुभ मुहूर्त कब है।
Diwali 2021- सनातन धर्म मे दिपावली के त्यौहार का सामाजीक और धार्मिक दोनों दृष्टी से विशेष महत्व है। इस लिए इसे दीपोत्सव भी कहा जाता है हिन्दू पंचांग के अनुसार , कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष कि अमावस्या को दिपावली का पर्व मनाया जाता है और इस साल कार्तिक अमावस्या 4 नवंबर , गुरूवार को है और सनातन धर्म के अनुसार दिपावली का त्यौहार माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश को समर्पित है दिपावली के दिन विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से मनुष्य के जीवन मे कभी भी धन कि कमी नहीं होती है और आध्यात्मिक रूप से यह 'अंधकार पर प्रकाश के विजय को दर्शाता है '।
दिपावली विशेष
दिपावली क्यूँ मनाई जाती है
दिपावली का आध्यात्मिक महत्व
दिपावली कि पूजा विधि
दीपावली लक्ष्मी पूजा मंत्र
दिपावली 2021मे कब है ,( Diwali in 2021 )
दिपावली 4 नवंबर 2021 गुरूवार
अमावस्या प्रारम्भ समय - प्रातः 6: 30 से
अमावस्या तिथि समाप्त - 5 नवम्बर 2021 को प्रातः 2:440 बजे तक .
प्रदोष काल - शाम 5:34 से 20:10 तक
वृषभ काल - शाम 6:10 से 8:06 तक
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - शाम 6:09 मिनट से रात्रि 8:20 तक
दिपावली विशेष :-
दिपावली के दिन भारतवर्ष मे बिभिन्न स्थानों पर मेले लगते है दशहरे के पश्चात् ही दिपावली कि तैयारियां शुरू हो जाती है लोग नए कपड़े बाजार से खरीदते है और बाजारों मे चहलपहल देखते हि बनता है लोग अपने घरों को रंग बिरंगे बल्बों से फूलो से सजाते है जम के आतिशबाजी होती है शाम को माँ लक्ष्मी और गणेश भगवान कि पूजा कि जाती है उसके बाद लोग अपने अपने घरों को दीये और मोमबतीयो से सजाते है दिये और मोमबतीयो से सजे हुए घरों का अपना एक मनमोहक नजारा होता है जो देखते हि बनता है ।।
दिपावली क्यूँ मनाई जाती है :-
माना जाता है दिपावली के दीन अयोध्या के राजा राम अपना चौदह वर्ष का बनवास खत्म करने के पश्चात् लौटे थे अयोध्या वासी अपने अती परम् प्रिय राजा के आगम से झूम उठे थे राजा रामचन्द्र के आगम कि खुशी मे अयोध्यावासीयो ने घी के दीपक जलाये और अपने राजा का स्वागत किया, कार्तिक मास कि अमावस्या कि वो काली रात दियो कि रौशनी से जगमगा उठी थी , तब से लेकर आज तक हम भारतीय यह प्रकाश पर्व हर्षो उल्लाहस् के साथ मनाते है ।
दिपावली का अध्यत्मिक महत्व :-
सनातन धर्म मे दिपावली का एक अपना अलग महत्व है रामायण मे बताया गया है कि राम के चौदह वर्ष का वनवास खत्म करके आने कि ख़ुशी मे मनाया जाता है अन्य हिन्दू काव्य के अनुसार जैसे, महाभारत के अनुसार पाण्ड्वो के 12, वर्ष के वनवास एव्ं 1 बर्ष अज्ञातवाश के बाद पांडवो कि वापसी के रूप मे मनाते है. दीपावली का पाँच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकीक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप मे होता है दीपावली के दीन ही देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपना पति चूना और शादी कि ।। लक्ष्मी जी के साथ साथ भक्त के दुखो को हरने वाले श्री गणेश कि भी पूजा होती है माँ सरस्वती एवं "कुबेर देव " कि भी पूजा अर्चना होती है ।। 
दिपावली कि पूजा विधि :-
सबसे पहले चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए अब लाल कपड़े के बीच मे भगवान गणेश एवं माँ लक्ष्मी कि मूर्ति रखे लक्ष्मी जी को ध्यान से गणेश जी के दाहिने तरफ ही बैठाये, और दोनों मूर्तियों का चेहरा पूर्व या पाश्चिम दिशा के तरफ रखे अब दोनों मूर्तियों के आगे कुछ पैसे सोना चांदी या अपने यथा शक्ति अनुसार कुछ धन चढ़ाये, अगर चांदी के सिक्के हो तो 5 सिक्के भी रखे क्योकि चांदी के सिक्के कुबेर भगवान के रूप है अब लक्ष्मी जी के दाहिने ओर अक्षत से अष्ठ दल बनाये यानि आठ दिशाये ऊँगली से बाहर बनाये और फिर जल भरे कलश को बीच मे रख दे, कलश के अंदर थोड़ा दुर्वा, चन्दन,पंचरत्न,सुपारी आम के पत्ते डालकर मौली बंधा हुआ नारियल कलश पर रखे,इसके बाद पूजा कि थाली सामने रखे, दो बड़े दिये मे देसी घी डाल कर और ग्यारह छोटे दियो मे सरसों का तेल डालकर तैयार रखे। घर के सभी लोगो को बैठने के लिए चौकी के अगल बगल आसन् बना ले ।
ध्यान रखे ये सारे काम शुभ मुहूर्त शुरू होने से पहले हि कर ले ।।
दीपावली पूजा मंत्र :-
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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