Karwa Chauth varat 2022 कब है 13 या 14 को ?

क्रिया का अर्थ है करना :-
क्रिया के बिना कोई वाक्य पूर्ण नहीं होता किसी वाक्य में कर्ता कर्म तथा काल की जानकारी भी क्रियापद के माध्यम से ही होती है
तथा संस्कृत में क्रिया रूप को धातु कहते हैं जैसे :- खाना , नाचना , खेलना , पढना , मारना , पीना , जाना , सोना , लिखना , जागना , रहना , गाना , दौड़ना आदि।
धातु – हिंदी क्रिया पदों का मूल रूप ही धातु है धातु में ना जोड़ने से हिंदी के क्रियापद बनते हैं
परिभाषा – जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है उसे क्रिया कहते हैं
1. अकर्मक क्रिया
2. सकर्मक क्रिया
अकर्मक, यानी जिसके साथ कर्म नहीं हो।
सकर्मक, यानी जिसके साथ कर्म हो।
1. अकर्मक क्रिया :-
अकर्मक क्रिया से तात्पर्य है -कर्म के बिना । जिन क्रियाओं को कर्म की जरूरत नहीं पड़ती उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं अथार्त जिन क्रियाओं का फल कर्ता को मिलता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे :- रोना, तैरना , सोना , ठहरना, मरना, चलता , दौड़ना, डरना , बैठना, आदि।
उदहारण :-
(1) राम खेलता है ।
(2) बच्चा रोता है ।
(3) चिड़िया उड़ती है।
2. सकर्मक क्रिया :-
कर्मक क्रिया से तात्पर्य है- कर्म के साथ | जिस क्रिया का प्रभाव कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े , उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे :- खाना, पढ़ना, काटना, लिखना आदि।
उदहारण :-
(1) वह लकड़ी काटता है।
(2) सीता रोटी पकाती है ।
(3) रीता खाना खा रही है।
संरचना या प्रयोग के आधार पर क्रिया के चार भेद होते हैं :-
1-प्रेरणार्थक क्रिया : जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं काम ना करके किसी और से काम करा रहा हो, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं । जैसे- बोलवाना, लिखवाना आदि।
2- नामधातु क्रिया : ऐसी धातु जो क्रिया को छोड़कर किन्ही अन्य शब्दों जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनती है, वह नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे - अपनाना, बतियाना आदि।
3- सयुंक्त क्रिया : ऐसी क्रिया जो किन्ही दो क्रियाओं के मिलने से बनती है, वह सयुंक्त क्रिया कहलाती है। जैसे- पढ़ लिया, बोल दिया, खा लिया आदि ।
4- कृदंत क्रिया : जब किसी क्रिया में प्रत्यय जोड़कर उसका नया क्रिया रूप बनाया जाए, तब वह क्रिया कृदंत क्रिया कहलाती है। जैसे -दौड़ता, भागता आदि।
इनके अलावा क्रिया के कुछ अन्य रूप भी हैं-
मुख्य क्रिया-हंसना, रोना, खाना, पीना इत्यादि।
सहायक क्रिया-मुख्य क्रिया की सहायता कया सहायक क्रिया कही जाती है। जैसे-हूं, हैं, रहा, रही, था, थे, थी इत्यादि।मै किताब पढ़ रहा हूं। इसमें पढ़ना मुख्य क्रिया है, जबकि उसकी सहायता में आया हूं सहायक क्रिया।
पूर्वकालिक क्रिया-पूर्व काल में की गई क्रिया,जब कोई कर्ता किसी क्रिया को समाप्त करके दूसरी क्रिया शुरू कर देता है, तो पहले संपन्न की गई क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कही जाएगी। जैसे-मैं पढ़कर खाने लगा। यहां पढ़ने की क्रिया पहले होती है और खाने की बाद में। लिहाजा पढ़कर पूर्वकालिक क्रिया है।
प्रेरणार्थक क्रिया- कर्ता जब खुद काम न करके किसी दूसरे को इसके लिए प्रेरित करता है, तब क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया कही जाती है। जैसे-वह मजदूर से खेत जुतवा रहा है। यहां जुतवाना प्रेरणार्थक क्रिया है। यह भी दो तरह की होती है-प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक।
द्विकर्मक क्रिया- जिस क्रिया के साथ दो कर्म आएं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहेंगे। जैसे-शिक्षक बच्चों को हिंदी पढ़ा रहे हैं। इस वाक्य में पढ़ाना क्रिया के साथ दो कर्म आए हैं-बच्चों और हिंदी। ऐसे में यहां पढ़ाना द्विकर्मक क्रिया के दायरे में आएगा।
क्रियार्थक क्रिया- जिस क्रिया का प्रयोग मुख्य क्रिया के पहले संज्ञा के रूप में होता है, उसे क्रियार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-वह पढ़ने के लिए पटना जा रहा है। यहां पढ़ना क्रियार्थक हो जाएगा, क्योंकि जाना मुख्य क्रिया है और उसके पहले पढ़ना का प्रयोग संज्ञा के रूप में हुआ है।
विधि क्रिया-क्रिया के जिस रूप से आज्ञा, उपदेश, अनुमति, अनुरोध, प्रार्थना आदि का बोध हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं। जैसे-अंदर आओ। यहां आओ है। हे प्रभु, मेरी मदद करो। यहां करो विधि क्रिया है।
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